Bhagwat katha

अष्टादश पुराणों में भागवत नितान्त महत्वपूर्ण तथा प्रख्यात पुराण है। भागवत पुराण में महर्षि सूत जी शौनकादि ऋषियों को भागवत की कथा सुनाते हैं। ऋषि भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों के बारे में प्रश्न पूछते हैं। सूत जी कहते हैं कि यह कथा उन्होने एक दूसरे ऋषि शुकदेव से सुनी थी। इसमें कुल बारह स्कन्ध, तीन सौ पेंतीस अध्याय और अठारह हजार श्लोक हैं।
श्रीमद्भागवत भक्तिरस तथा अध्यात्मज्ञान का समन्वय उपस्थित करता है। भागवत निगमकल्पतरु का पक्का हुआ फल माना जाता है। जिसे नैष्ठिक ब्रह्मचारी तथा ब्रह्मज्ञानी महर्षि शुक ने अपने परम भक्त महाराज परीक्षित को शुक्रताल में बैठकर अपनी मधुर वाणी से अमृतमय बनाकर सात दिनों तक यह कथा सुनाई थी।

भागवत में कहा गया है-
सर्ववेदान्तसारं हि श्रीभागवतमिष्यते।
तद्रसामृततृप्तस्य नान्यत्र स्याद्रतिः क्वचित् ॥

श्रीमद्भागवत सर्व वेदान्त का सार है। उस रसामृत के पान से जो तृप्त हो गया है, उसे किसी अन्य जगह पर कोई रति नहीं हो सकती। (अर्थात उसे किसी अन्य वस्तु में आनन्द नहीं आ सकता।

भगवान श्री शुकदेव जी की परंपरा को निभाते हुए पूज्य भैयाजी भागवत जी का आधार लेकर सम्पूर्ण देशभर में एक सौ पच्चास से अधिक कथाएं कर चुके हैं। यह कथा प्रतिदिन तीन से चार घंटे के अनुसार सात दिनों तक चलती है।